जो तुम्हारी ख़ामोशी से तुम्हारी तकलीफ का अंदाज़ा न कर सकें उसके सामने ज़ुबान से इज़हार करना सिर्फ लफ्ज़ो को बर्बाद करना हैं "हज़रत अली
"

Friday, 19 July 2013

DAUSA

हजरत जमाल  शाह रहमतुल्लाही अलैहि  दौसा

कौमी एकता साम्पदायिक सदभाव का प्रतीक लालसोट रोड दौसा पर मौजूद हजरत जमाल शाह बाबा रहमतुल्लाहि अलैहि  दरगाह सभी धर्म ,मजहब के लोगों की अकीदत का बड़ा मर्कज हैं !
यहाँ पर राजस्थान नहीं बल्कि हर सूबे से और दूर दराज से अकीदतमंद जायरीन आते  रहते हैं
और उनकी मन्नतें पूरी होती है साथ ही साथ कई बीमारियों का इलाज भी बाबा की दुआ से हो जाता है !
२० साल की उमर मे अल्लाह बख्श की साहबजादी आबिदा खातून से आपका निकाह हुआ था

हजरत मेहबूब सुल्तानुल औलिया ख्वाजा हकीमुद्दीन शाह रहमतुल्लाही अलैहि

उतर प्रदेश के शहर फिरोजाबाद में अलहाज सूफी मियां मुहम्मद जाफर शाह के यहाँ 20 अप्रेल 1922 ईस्वी को आपकी पैदाइश हुई ! आपकी वालिदा माजिदा का नाम हज्जन लाडो बेगम था !


ईद के दिन की सुन्नतें

ईद के  दिन की सुन्नतें 


१ मिस्वाक व गुस्ल करना !

२ नए कपड़े पहनना !

३ खुश्बू लगाना !

४ कोई मीठी चीज़ खाकर ईद की नमाज़ के लिए जाना !

५ ईद की नमाज़ से पहले फ़ितरा अदा करना !

६ ईदगाह तक पैदल जाना !

७ एक रास्ते से जाना और दुसरे रास्ते से आना !

८ अल्लाहो अकबर ,अल्लाहो अकबर ,लाइलाहाइल्लल्लाहो ,वल्लाहो अकबर , अल्लाहो अकबर वलिल्लाहिल हम्द पढ़ते हुए ईदगाह जाना!

Wednesday, 17 July 2013

DUAA

रमजान की रातों में 

रमजान की हर रात तीन बार यह दुआ पढ़ें -
ला इलाहा इल्ल्ल्लाहुल हलीमुल करीम सुब्हान्ल्लाहे 
रब्बिस्समावातिस शबे व रब्बिल अर्शील अज़ीम !
इसके पढ़ने से रहमते इलाही व फज्ले खुदा वन्दी से मालामाल होंगे !  (इंशाअल्लाह )

Tuesday, 16 July 2013

प्यारे नबी कि प्यारी बातैं

प्यारे नबी कि प्यारी बातैं

हजरत अबू हुरैरा रदियल्लाहो अन्हो का बयान है अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया जिसने ईमान की हालत में सवाब की नियत से रमजान के रोज़े रखे उसके अगले गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं (बुखारी शरीफ )
हजरत बीवी आइशा का बयान है अल्लाह के रसूल साल के और महीनों कि बनिस्बत रमजान में ज्यादा इबादत किया करते और रमजान के आखिरी दिनों में तो सब से ज्यादा ! (मुस्लिम शरीफ )

जिसने रमजान के  महीने के रोज़े रखे और  ईद के बाद 6 रोज़े और रखे तो गोया उसने पुरे साल का रोज़ा रखा ! (मुस्लिम शरीफ)

हजरत  बीवी आयशा ने अल्लाह के रसूल से पूछा - या रसूलल्लाह ! अगर मुझे लैलतुल कद्र के बारे में पता चल जाए  की आज की  रात ही लैलतुल  कद्र है तो मैं उसमे कौन सी दुआ पढू ? आपने फ़रमाया यह दुआ पढो अल्लाहुम्मा इन्नका अफुवुन तुहिब्बुल अफ्त ,फअफो  अन्नी !(तिर्मिजी ) 

हजरत अबू कतादा अंसारी का बयान  है-अल्लाह के रसूल से लोगों ने अरफा के रोज़े के बारे   में पूछा  तो आपने फ़रमाया -अरफा के एक दिन का रोज़ा साल के अगले पिछले साल के गुनाहों को मिटा देता है ! (मुस्लिम शरीफ )
सेहरी किया करो क्योकि उस में बरकत है !(बुखारी शरीफ )

Sunday, 14 July 2013

ISLAMIC MESSAGE

बेटी 

रहमत या तकलीफ ?????????

या अल्लाह मुझे  बेटी ही देना , मुझे बेटा नहीं बेटी ही चाहिए ताकि मेरी चौथी बेटी मुझे जहन्नम से बचा ले!
उसके आंसू गिरते  जा रहे  थे और इस की जबान  पे येही दुआ थी या अल्लाह  मुझे बेटी हीं अता  फरमा ,
मै  तेरी बेटे जैसी नेअमत का इंकार नहीं करता ! बेशक बेटा तेरी नेअमत है लेकिन मै तेरी रहमत का तलबगार हूँ !
आप ये  पढ़ कर  यकीनन  हैरान हो रहे होंगे कि ये कैसा शख्स है जो बेटे की बजाय बेटी की तलब कर रहा है ! तो उसकी हकीकत सुनिए !
 इस आदमी के यहाँ तीन बेटीयां थीं वोह उनसे बहुत नफ़रत करता था , क्योंकि वोह भी इस  समाज में पला बढ़ा था जहाँ बेटे की पैदाइश पर  खुशियाँ मनाई जाती है और बेटी की पैदाइश पर सोग मनाया जाता है बेटों को आँखों की ठण्डक और बेटियों को जहमत (दुख व तकलीफ ) करार दिया जाता है जो की सरासर एक मुसलमान के लिए शरीअते मुहम्मदी से दुरी की अलामत है !
एक दिन वो आदमी अपनी बीवी से सख्ती से कहने लगा कि अब भी अगर बेटी हुई तो मैं तुम्हे तलाक दे दूंगा ! उसकी बीवी बहुत परेशान हो गई और अल्लाह के दरबार में गिडगिडा कर दुआ  करने लगी ! ये तेरा भुला हुआ  बन्दा मुझे से उस चीज़ का  तालिब है जो मेरे बस में नहीं या अल्लाह मुझे बेटा देदे कि तेरे पास किसी चीज़ की कमी नहीं है या उसे हिदायत दे की तू बेनियाज़ है ! उसकी दर्द में भींगी हुई दुआ अल्लाह के यहाँ कबूल हो चुकी थी ! उस शख्स की हिदायत के परवाने लिखे जा चुके थे ! हुआ यूँ कि रात को वो आदमी सोया तो क्या देखता है कि फिरिश्ते उसे जहन्नुम में धकेल रहे है ! जब वो दरवाजे के करीब पहुंचे तो दरवाजे पर वोह बेटी जिसे उसने कभी जी भर कर देखा भी  नहीं  था खड़ी है और फिरिश्ते से फरियाद करती है मेरे अब्बू को न लेकर जाओ लेकिन फिरिश्ते उसे दुसरे दरवाजे से ले गये ! जहाँ उसकी दूसरी  बेटी खड़ी है वो भी फिरिश्तों का रास्ता रोक कर  बोली मेरे अब्बू को न ले कर जाओ !
फिरिश्ते ने उस आदमी को तीसरे दरवाजे  से ले कर जाना   चाहा मगर वहाँ    उसकी तीसरी  बेटी उसके  ढाल बन  गई फिरिश्ते  ने उसे चौथे दरवाजे से जहन्नम में फेंक दिया ! जैसे ही उसे फेंका गया उसकी आँख खुल गई और उसका सारा जिस्म पसीने से शराबोर और खौंफ से लरज  था  उसने फौरन हाथ उठाए और दुआ की या अल्लाह ! तेरा गुनाहगार बन्दा तुझ से दुआ करता है अपनी रहमत की सुरत में चौथी बेटी अता  कर जो जहन्नम के चौथे दरवाजे पर भी  लिए ढाल बन  जाये !
इबरत है उन लोगों के लिए जो अपनी बेटियों को जहमत समझते है ! जबकि बेटों को आँखों पर बिठाते है !
इरशादे नबवी है :- "जिस आदमी ने अपनी चार बेटियों की परवरिश सही तरीके से की और उन्हें जेंवर तालीम से आरास्ता किया , उनकी वक्त पर शादी की ,वो कयामत के दिन मेरे साथ इस तरह होगा  जिस तरह ये दो उंगलिया है ! ( हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी शहादत वाली और बीच की उंगली को मिलाते हुए इशारा फ़रमाया ) हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमा रहे थे कि एक सहाबी खड़े हुए और अर्ज किया  या रसूलल्लाह ! अगर किसी की  तीन  बेटिया हों तो उसके लिए क्या हुक्म है ? हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुस्कुराए ओर  फ़रमाया "आमना का लाल उसके लिए भी यही बशारत देता है इतने में एक और परवाना बे चेन हो उठा और कहा या रसूलल्लाह ! अगर किसी के दो बेटिया  हो तो ?
रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया उसके लिए भी यही खुशखबरी है इतने में एक और दीवाना उठा और अर्ज किया की या रसूलुल्लाह ! अगर किसी की सिर्फ एक ही बेटी हो ?
रसूलुल्लाह अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :उसके लिए भी यही बशारत है अब मै तमाम मुसलमानों को दावते फ़िक्र देता हूं कि मुसलमानों को जगाएं और गौर करें कि बेटी रहमत है या जहमत ???

रमजानुल मुबारक 

रमजान रम्जुन से बना है जिसका मतलब जलाने और गर्म है इस माहे मुबारक की बरकत से नफ्स की ख्वाहिशात खत्म हो जाती है और बुराइया दूर होती है एक आलिमे दीन लिखते है की रोजों में भूक प्यास की तकलीफ और गर्मी बर्दाश्त करनी पड़ती है इस वजह से रमजान  नाम रखा गया है
हजरत अनस बिन मालिक से रिवायत है कि हुजुर पुरनूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "रमजान का नाम रमजान इस वजह से रखा गया है कि इसमें गुनाह जल जाते है '
सूरह बकर शरीफ में है कि "ऐ ईमान वालों ! तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किये गये जैसे अगलो पर फ़र्ज़ थे की कही तुम्हे परहेजगारी मिले "
यानी परहेजगारी पैदा हो और गुनाहों से दुरी हासिल हों फिर उसी सूरह में फ़रमाया है "रमजान का महीना है जिसमे कुरआन उतरा ! लोगो के लिए हिदायत और रहनुमाई और फैसले की रोशन बाते "