जो तुम्हारी ख़ामोशी से तुम्हारी तकलीफ का अंदाज़ा न कर सकें उसके सामने ज़ुबान से इज़हार करना सिर्फ लफ्ज़ो को बर्बाद करना हैं "हज़रत अली
"

Sunday, 14 July 2013

ISLAMIC MESSAGE

बेटी 

रहमत या तकलीफ ?????????

या अल्लाह मुझे  बेटी ही देना , मुझे बेटा नहीं बेटी ही चाहिए ताकि मेरी चौथी बेटी मुझे जहन्नम से बचा ले!
उसके आंसू गिरते  जा रहे  थे और इस की जबान  पे येही दुआ थी या अल्लाह  मुझे बेटी हीं अता  फरमा ,
मै  तेरी बेटे जैसी नेअमत का इंकार नहीं करता ! बेशक बेटा तेरी नेअमत है लेकिन मै तेरी रहमत का तलबगार हूँ !
आप ये  पढ़ कर  यकीनन  हैरान हो रहे होंगे कि ये कैसा शख्स है जो बेटे की बजाय बेटी की तलब कर रहा है ! तो उसकी हकीकत सुनिए !
 इस आदमी के यहाँ तीन बेटीयां थीं वोह उनसे बहुत नफ़रत करता था , क्योंकि वोह भी इस  समाज में पला बढ़ा था जहाँ बेटे की पैदाइश पर  खुशियाँ मनाई जाती है और बेटी की पैदाइश पर सोग मनाया जाता है बेटों को आँखों की ठण्डक और बेटियों को जहमत (दुख व तकलीफ ) करार दिया जाता है जो की सरासर एक मुसलमान के लिए शरीअते मुहम्मदी से दुरी की अलामत है !
एक दिन वो आदमी अपनी बीवी से सख्ती से कहने लगा कि अब भी अगर बेटी हुई तो मैं तुम्हे तलाक दे दूंगा ! उसकी बीवी बहुत परेशान हो गई और अल्लाह के दरबार में गिडगिडा कर दुआ  करने लगी ! ये तेरा भुला हुआ  बन्दा मुझे से उस चीज़ का  तालिब है जो मेरे बस में नहीं या अल्लाह मुझे बेटा देदे कि तेरे पास किसी चीज़ की कमी नहीं है या उसे हिदायत दे की तू बेनियाज़ है ! उसकी दर्द में भींगी हुई दुआ अल्लाह के यहाँ कबूल हो चुकी थी ! उस शख्स की हिदायत के परवाने लिखे जा चुके थे ! हुआ यूँ कि रात को वो आदमी सोया तो क्या देखता है कि फिरिश्ते उसे जहन्नुम में धकेल रहे है ! जब वो दरवाजे के करीब पहुंचे तो दरवाजे पर वोह बेटी जिसे उसने कभी जी भर कर देखा भी  नहीं  था खड़ी है और फिरिश्ते से फरियाद करती है मेरे अब्बू को न लेकर जाओ लेकिन फिरिश्ते उसे दुसरे दरवाजे से ले गये ! जहाँ उसकी दूसरी  बेटी खड़ी है वो भी फिरिश्तों का रास्ता रोक कर  बोली मेरे अब्बू को न ले कर जाओ !
फिरिश्ते ने उस आदमी को तीसरे दरवाजे  से ले कर जाना   चाहा मगर वहाँ    उसकी तीसरी  बेटी उसके  ढाल बन  गई फिरिश्ते  ने उसे चौथे दरवाजे से जहन्नम में फेंक दिया ! जैसे ही उसे फेंका गया उसकी आँख खुल गई और उसका सारा जिस्म पसीने से शराबोर और खौंफ से लरज  था  उसने फौरन हाथ उठाए और दुआ की या अल्लाह ! तेरा गुनाहगार बन्दा तुझ से दुआ करता है अपनी रहमत की सुरत में चौथी बेटी अता  कर जो जहन्नम के चौथे दरवाजे पर भी  लिए ढाल बन  जाये !
इबरत है उन लोगों के लिए जो अपनी बेटियों को जहमत समझते है ! जबकि बेटों को आँखों पर बिठाते है !
इरशादे नबवी है :- "जिस आदमी ने अपनी चार बेटियों की परवरिश सही तरीके से की और उन्हें जेंवर तालीम से आरास्ता किया , उनकी वक्त पर शादी की ,वो कयामत के दिन मेरे साथ इस तरह होगा  जिस तरह ये दो उंगलिया है ! ( हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी शहादत वाली और बीच की उंगली को मिलाते हुए इशारा फ़रमाया ) हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमा रहे थे कि एक सहाबी खड़े हुए और अर्ज किया  या रसूलल्लाह ! अगर किसी की  तीन  बेटिया हों तो उसके लिए क्या हुक्म है ? हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुस्कुराए ओर  फ़रमाया "आमना का लाल उसके लिए भी यही बशारत देता है इतने में एक और परवाना बे चेन हो उठा और कहा या रसूलल्लाह ! अगर किसी के दो बेटिया  हो तो ?
रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया उसके लिए भी यही खुशखबरी है इतने में एक और दीवाना उठा और अर्ज किया की या रसूलुल्लाह ! अगर किसी की सिर्फ एक ही बेटी हो ?
रसूलुल्लाह अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :उसके लिए भी यही बशारत है अब मै तमाम मुसलमानों को दावते फ़िक्र देता हूं कि मुसलमानों को जगाएं और गौर करें कि बेटी रहमत है या जहमत ???

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